08 Mar, 2021
अगर आप ये सोचते हैं कि किसान आंदोलन में महिलाएं सिर्फ रोटियां बेलेने के लिए मौजूद है,तो आपकी इस गलतफहमी को यह ब्लॉग पूरी तरह से खत्म कर देगा।
नमस्कार किसान बहनों और भाइयों ट्रैक्टरज्ञान में आपका स्वागत है।
सर्वप्रथम ट्रैक्टरज्ञान की तरफ से महिला दिवस की हार्दिक-हार्दिक शुभकामनाएं। चलिए शुरू करते है।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर किसान आंदोलन में क्या खास?
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस को देखते हुए संयुक्त किसान मोर्चा ने यह फैसला लिया कि आज के दिन आंदोलन का नेतृत्व पूरी तरह से महिलाओं को सौंप दिया जाएगा।
अलग-अलग बॉर्डर पर जितने भी मंच बने हुए हैं उन सब का संचालन करने के साथ-साथ आंदोलन की पूरी व्यवस्था भी महिलाएं ही संभालेंगी। साथ ही पंजाब और हरियाणा में कल सैकड़ों ट्रैक्टर और मिनी बसों में बैठकर महिलाएं दिल्ली के लिए रवाना हो गई थी। संयुक्त किसान मोर्चा की माने तो उन्होंने 40000 महिलाओं के आने का दावा किया है।
किसान आंदोलन में अब तक क्या रही महिलाओं की भूमिका?
किसान आंदोलन को 100 दिनों से भी ज्यादा हो चुके हैं । किसान आंदोलन को खत्म करने के लिए सरकार के तमाम प्रयासों को किसानों ने विफल कर दिया है।अच्छा होता अगर सरकार इस आंदोलन को खत्म करने के बजाय, आंदोलन से जुड़ी समस्याओं को खत्म करने पर ध्यान देती। परंतु अब तो सरकार ने बिल्कुल चुप्पी साध ली है। जिसकी वजह से यह आंदोलन के अनिश्चितता की स्थिति पर आ गया है।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर क्या वजह है जिससे ये आंदोलन अभी तक इतनी मजबूती से आगे बढ़ता जा रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण है आंदोलन में बढ़ती महिलाओं की सहभागिता।
इस बात को और गहराई से समझते हैं किसान आंदोलन से जुड़ी कुछ महिलाओं के किस्से से!
● पहली कहानी उस महिला की,जिसके पिता 30 साल पहले एक दंगे का शिकार हुए।
हरिंदर के पिता मेघराज भक्तुआना का 30 साल पहले खालिस्तानी समर्थकों ने कत्ल कर दिया था. अब वो किसान यूनियन उगरांवा की सचिव हैं और पंजाब की महिलाओं को इस आंदोलन से जोड़ने में अहम भूमिका निभा रही हैं.
हरिंदर बिंद ने कहती है कि, 'पिता की हत्या खालिस्तानियों ने कर दी थी तभी सोच लिया कि मजदूर किसानों के बीच काम करूंगी अब मैं गांव गांव जाकर महिलाओं को जागरूक करती हूं.
● दूसरी कहानी उस महिला की जो मंच से लेकर फंडिंग तक की व्यवस्था से संभालती है।
रोहतक-दिल्ली राजमार्ग से करीब चार किलोमीटर दूर टिकरी बार्डर पर भी विरोध सभा चल रही है. यहां मंच के ठीक बगल में बैठी जसबीर कौर नत हैं. क्लर्क के पद से रिटायर होने के बाद किसान यूनियन से जुड़ गई. वो खुद टिकरी बार्डर पर हैं और बेटा सिंधु बार्डर पर धरना दे रहा है. यहां बैठकर आंदोलन की फंडिंग से लेकर मंच पर किसको बोलना है ये जसबीर कौर नत ही तय करती हैं.
जसबीर कौर नत ने कहा, 'मैं 1997 से भारतीय किसान यूनियन के साथ काम कर रही हूं. यहां मुझे कोई दिक्कत नहीं है. सब मिलाकर फंडिंग से लेकर मंच संचालन तक करती हूं. सारे किसान भाइयों का बहुत सहयोग मिलता है.' लेकिन इस किसान आंदोलन में गुरमेल कौर जैसी कई बुजुर्ग महिलाएं भी मौजूद हैं जो आंदोलन के लिए इस ठंड में गांव छोड़कर दिल्ली बार्डर पर आ जमीं हैं. इनका किसी संगठन से ज्यादा सरोकार नहीं है. बस गांव से अपने जत्थे के साथ आंदोलन में शामिल लोगों का हौसला बढ़ाने आई हैं.
धन्यवाद! ट्रैक्टरज्ञान से जुड़े रहिएगा। जानकारी सही,मिलेगी यहीं!
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