किसानों के आक्रोश के बीच तीनों कृषि विधेयक हुए पारित, जानें क्यों हो रहा है विरोध और सरकार क्या कह रही है।
पिछले एक दो महीने से किसान सरकार के जिन 3 अध्यादेशों के खिलाफ लगातार अपनी आवाज बुलंद कर रहें थे, जिनको लेकर किसानों ने लाठियां खाई, जिनको लेकर किसान नेताओं ने संसद का घेराव किया और अपनी गिरफ्तारी दी, जिनको लेकर केंद्रीय मंत्री हरमनप्रीत कौर ने इस्तीफा तक दे दिया और राजनीतिक दलों में भी टकराव हो गया, कृषि से जुड़े वे तीनों विधेयक गुरुवार तक लोकसभा में पारित हो चुके है। जहां मंगलवार को आवश्यक वस्तु (संशोधन) अध्यादेश, 2020 पारित हुआ वहीं गुरुवार को लोकसभा में दो कृषि विधेयकों 'कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020' और 'कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020' भी पारित हो गए।
जहां विपक्षी दलों ने जबरदस्त विरोध जताते हुए विधेयक के खिलाफ पक्ष रखा वही सरकार ने भी अपने तर्क सामने रखें। क्योंकि अब सरकार ने भी अपने तर्क और विधेयकों के सकारात्मक प्रभावों का जिक्र किया है हम इस स्थिति में है, जहां दोनों पक्षों के बिंदुओं पर चर्चा करके यह तय कर सकें की यह विधेयक किसानों के लिए उचित है या नहीं।
क्या कहते हैं ये विधेयक:-
कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक - इस विधेयक के मुताबिक अब व्यापारी मंडी से बाहर भी किसानों की फसल खरीद सकेंगे। पहले फसल की खरीद केवल मंडी में ही होती थी। इसी विधेयक को लेकर किसानों में सर्वाधिक आक्रोश एवं संका है। इसमें खरीददारों के लिए कुछ नियम भी तय किए गए है जिससे किसानों लाभ होगा, जैसे कि किसी कंपनी या व्यवसायी के साथ उपज की बिक्री का करार अगर होता है तो खरीददार ही फसल की अच्छी पैदावार के लिए अवसायक साधन उपलब्ध कराएगा।
आवश्यक वस्तु अधिनियम विधेयक - केंद्र ने अब दाल, आलू, प्याज, अनाज और खाद्य तेल आदि को आवश्यक वस्तु नियम से बाहर कर इसकी स्टॉक सीमा समाप्त कर दी है। संशोधन के तहत यह व्यवस्था की गई है कि अकाल, युद्ध, कीमतों में अभूतपूर्व वृद्धि और प्राकृतिक आपदा जैसी परिस्थितियों में इन कृषि उपजों की कीमतों को नियंत्रित किया जा सकता है।
मूल्य आश्वासन तथा कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौता विधेयक - इसके तहत केंद्र ने कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग (अनुबंध कृषि) को बढ़ावा देने पर भी काम शुरू किया है। बिचौलियों की भूमिका खत्म होगी और किसानों को अपनी फसल का बेहतर मूल्य मिलेगा। इसमें किसानों को पर्याप्त सुरक्षा दी गई है और समाधान की स्पष्ट समय सीमा के साथ प्रभावी विवाद समाधान तंत्र भी उपलब्ध कराया जाएगा।
किसानों का विरोध:-
विधेयकों का विरोध करने वाले द्वारा तर्क दिया जा रहा है कि इनसे मंडी व्यवस्था खत्म हो जाएगी। उनका कहना उपज और वाणिज्य विधेयक से मंडी एक्ट केवल मंडी तक ही सीमित कर दिया गया है और मंडी में खरीद-फरोख्त पर शुल्क लगेगा जबकि बाहर बेचने-खरीदने पर इससे छूट मिलेगी। इस नियम से खासकर मंडी व्यापारी बहुत नाराज हैं, उनका कहना है कि इससे बाहरी या प्राइवेट कारोबारियों को फायदा पहुंचेगा। किसानों की यह भी चिंता है कि उन्हें इस नियम के आने के बाद न्यूनतम समर्धन मूल्य (एमएसपी) नहीं मिलेगा, जो कि मंडियों के लिए तय होता था।
आवश्यक वस्तु अधिनियम विधेयक के विरोधी के रहे है कि इससे उपज के स्टोरेज से कालाबाजारी भी बढ़ेगी और बड़े कारोबारी इसका लाभ उठाएंगे। कानून बनने पर आपत्ति यह कहकर जताई जा रही है कि इससे कीमतों में अस्थिरता आएगी। फूड सिक्योरिटी पूरी तरह खत्म हो जाएगी, राज्यों को यह पता ही नहीं होगा कि राज्यों में किस वस्तु का कितना स्टॉक है।
वहीं मूल्य आश्वाशन विधेयक को लेकर विपक्ष का कहना कि अब निजी कंपनियां खेती करेंगी जबकि किसान मजदूर बन जाएगा। किसान नेताओं का कहना है कि इसमें एग्रीमेंट की समयसीमा तो बताई गई है लेकिन न्यूनतम समर्थन मूल्य का जिक्र नहीं किया गया है।
सरकार के तर्क:-
सरकार कहती है कृषि वाणिज्य से जुड़ा नया विधेयक से किसानों को उनकी उपज देश में कहीं भी बेचने की इजाजत देता है, इस तरह इससे वन नेशन वन मार्केट का मॉडल लागू हो जाएगा, इससे किसानों की आमदनी बढ़ेगी।
सरकार कहना कि मंडी व्यवस्था बंद होने वाली बात केवल भ्रामक प्रचार है, फसल उत्पादन के दौरान फसल पर किसान का मालिकाना हक होगा और फसल बीमा कराया जाएगा व जरूरत के अनुसार किसान ऋण भी ले सकेंगे।
वस्तु अधिनियम व्यवस्था पर सरकार कहती है कि से निजी निवेशक हस्तक्षेप के भय से मुक्त हो जाएंगे। साथ ही उत्पादन, भंडारण, ढुलाई, वितरण और आपूर्ति करने की आजादी से व्यापक स्तर पर उत्पादन करना संभव हो जाएगा और इसके साथ ही कृषि क्षेत्र में निजी/प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आकर्षित किया जा सकेगा, इससे कोल्ड स्टोरेज में निवेश बढ़ाने और खाद्य आपूर्ति श्रृंखला (सप्लाई चेन) के आधुनिकीकरण में मदद मिलेगी।
सरकार का कहना है कि मूल्य आश्वाशन विधेयक किसानों की उपज की वैश्विक बाजारों में आपूर्ति के लिए जरूरी आपूर्ति चेन तैयार करने को निजी क्षेत्र से निवेश आकर्षित करने में एक उत्प्रेरक के रूप में काम करेगा। किसानों की ऊंचे मूल्य वाली कृषि के लिए तकनीक और परामर्श तक पहुंच सुनिश्चित होगी, साथ ही उन्हें ऐसी फसलों के लिए तैयार बाजार भी मिलेगा और इससे होगा यह कि खेती से जुड़ी सारी रिस्क किसानों की नहीं बल्कि उनसे करार करने वालों के सिर होगी। इसके अलावा MSP खत्म होने की आशंका पर सरकार कह रही है कि ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।
किसानों के बीच इन विधेयकों को लेकर भ्रामक है या सरकार के ये नियम किसान विरोधी है यह तय अब आपको करना है। लेकिन विशेषज्ञों की माने तो किसान नेताओं से सरकार का सीधे बात ना करना गलत है अगर कोई भ्रामक है तो उसे दूर करने की जिम्मेदारी सरकार की है। विरोध के दौरान सरकार ने बात नहीं की, पर अब लोकसभा में दिए गए तर्को पर भी किसानों को ध्यान देना चाहिए और आगे कानून के हिसाब से बढ़ना चाहिए। हालांकि सरकार ने जो तर्क दिए उनपर भी सवाल उठ रहे है, कुछ किसानों का कहना है कि अगर सरकार तीनों में से किसी भी विधेयक में यह स्पष्ट कह देती की एमएसपी ख़तम नहीं होगी तो उन्हें शांति रहती। अब आगे जो भी है लेकिन जरूरी है कि आप जागरूक रहे, सरकारी फैसलों के हर पक्ष को जाने, उन्हें परखें और अपने अधिकारों के प्रति सचेत रहें।
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