चीते की चाल से बढ़ते डीजल के दाम का मुकाबला कैसे करेगी किसानों की कछुआ चाल आमदनी?
डीजल पेट्रोल के दाम दिन-ब-दिन बढ़ते जा रहे हैं। लेकिन किसानों की आय वही पर रुकी हुई है। एक तरफ डीजल के दाम चीते की रफ्तार से आगे बढ़ रहें हैं तो दूसरी तरफ किसानों की आमदनी कछुए की चाल से।
नहीं रहा डीजल और पेट्रोल के दामों में ज्यादा अंतर!
दिल्ली में पेट्रोल का दाम Rs 84.95/litre और डीजल का दाम 75.13/litre हो गया है तो वही भोपाल में पेट्रोल का दाम Rs. 92.8/litre और डीजल का दाम 83.04/litre हो गया है। यही हाल देश के अन्य शहरों का भी है।
किसानों का कहना है कि सरकार कम से कम डीजल के भाव पर तो नियंत्रण रखें। एक कृषि प्रधान देश में अगर किसानों की मांगों पर ही ध्यान नहीं दिया जाए तो यह बड़ी नाइंसाफी है।
1-2 ₹ बढ़ जाने से क्या प्रभाव पड़ता है!
यह कहना बड़ी मूर्खता है। क्योंकि किसान छोटे से लेकर बड़े कामों में भी डीजल के ऊपर आश्रित हैं। और पिछले 1 साल में तो डीजल के दामों में काफी बड़ा अंतर आया है।
किसान हंकाई-जुताई के अलावा खाद बीज भी ट्रैक्टर से लेकर आते हैं. बिजली नहीं मिलती है तो इसी डीजल से सिंचाई भी करते हैं। उसके बाद फसल कटने पर इसी डीजल से थ्रेसर भी चलता है और ट्रैक्टर से लादकर घर पर लाते हैं. अनाज को मंडी ले जाने की बात हो तो वहां भी डीजल ही काम आता है.
छोटे किसानों पर बड़ी मार!
वह किसान जिनके पास ज्यादा जमीन नहीं होती, वह बड़े किसानों के संसाधनों की मदद से ही अपनी खेती चलाते हैं। ऐसे में जब डीजल के दाम इतने बढ़ गए हैं तो लाजमी है कि बड़े किसान उनसे ज्यादा किराया वसूलने लगेंगे।
मध्य प्रदेश के किसानों का ही उदाहरण ले लीजिए।एक तरफ किसानों की सोयाबीन की फसल भी मौसम की मार से खराब हो गई थी और दूसरी तरफ थ्रेशर मशीन वालों ने भी उनका भाड़ा बढ़ा दिया। ऐसे में वहां के किसानों पर दोहरी मार पड़ी। खेती की लागत वसूलना तो दूर, उल्टे घाटे में चले गए।
जिस देश का अन्नदाता ही कर्ज में डूबा रहेगा उस देश का उद्धार कभी नहीं हो सकता। अतः सरकार को किसानों की समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए।
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