ड्रिप सिंचाई और सहजन के पौधों से कैसे एनजीओ बदल रहें है महाराष्ट्र के किसानों की ज़िंदगी?
महाराष्ट्र के कई इलाकों में किसान सूखे से परेशान हैं, वो पानी की कमी के कारण पारंपरिक फसलें नहीं उगा पा रहे हैं। सूखाग्रस्त इलाकों में किसानों की इस तरह की स्तिथि बन गई है कि वो खुद की गुज़र बशर भी नहीं कर पा रहें है। ऐसी परिस्थिति में मानवलोक अंबजोगाई और सेव इंडियन फार्मर्स (SIF) जैसे एनजीओ किसानों की मदद के लिए आगे आए हैं, यह एनजीओ जरूरतमंद किसानों को ड्रिप इरिगेशन सिस्टम और सहजन के पौधे मुफ्त बांट रहे हैं। किसान इनकी मदद से बंजर सी जमीनों पर भी बहुत कम पानी का उपयोग कर अच्छा मुनाफा कमाने लगें हैं।
क्या होता है सहजन?
आपको बता दें सहजन एक औषधीय गुणों वाला पेड़ होता है, जिसे कई इलाकों में सुजना, सैंजन और मुनगा आदि नामों से जाना जाता है, अंग्रेजी में इसे ड्रम्स्टिक कहते हैं।
इस पेड़ से फलियां मिलती हैं उन्हें सब्जी की तरह उपयोग में लिया जाता है, लेकिन अब यह औषधीय गुणों के कारण ज्यादा प्रचलित हैं, इसमें 300 से अधिक रोगों के रोकथाम की क्षमता है। इस पेड़ की खासियत है कि यह प्रतिकूल परिस्थितियों में भी आसानी से पनप सकता है, लेकिन बड़ी आसानी से उगने वाले इस पेड़ का हर हिस्सा उपयोगी है इसलिए इसके अच्छे दाम भी मिलते हैं।
अगर आपको ड्रिप इरिगेशन के बारे में जानना है तो आप यहा क्लिक करें- ड्रिप इरिगेशन के फायदे और प्रकार
और ड्रिप इरिगेशन पर सरकारी योजना जाने:-
कैसे बदली किसानों की ज़िंदगी?
किसानों की मदद को आगे आ रहे सेव इंडियन फार्मर्स (SIF) और मनावलोक अंबजगोई जैस क्षेत्रीय समाजसेवी संगठन जो काम कर रहे है उसका प्रभाव दिखने लगा है। सकारात्मक प्रभावों की एक ऐसी ही कहानी है महाराष्ट्र में अंबजगोई तहसील के येल्डा गांव के किसान श्रीपति चमनार की।
आज एनजीओ की मदद के कारण श्रीपति जी को सूखाग्रस्त क्षेत्र में भी अधिक उत्पाद मिल रहा है, जो सहजन और ड्रिप सिंचाई व्यवस्था उन्हें मुहैय्या कराई गई है उससे वो 1 लाख रुपए कमाने में सक्षम हुए हैं।
पहले वह कपास की फसल उगाते थे, लेकिन बदलते जलवायु और अपर्याप्त पानी के कारण उससे पर्याप्त आय नहीं मिल सकती। बेड़ा ज़िले के इस 50 वर्षीय किसान के लिए कोई और रोजगार मिलना संभव ना था। लेकिन ऐसी परिस्थिति में सेव इंडियन फार्मर्स (SIF) और मनावलोक अंबजगोई के बारे में उन्हें जानकारी मिली और उनकी ज़िंदगी बदल गई।
अब इस तरह खेती करते हैं श्रीपति:-
मदद मिलने के बाद श्रीपति ने ड्रम्स्ट्रिक की खेती शुरू कर दी, श्रीपति ने दो एकड़ में 1600 ड्रमस्टिक पौधे लगाए। ये पौधे क्रमशः 10 x 6 फीट और 1 × 1 फीट की गहराई पर बोए गए, उन्होंने जीव-आम्रत, गाय के गोबर का खाद / उर्वरक के रूप में उपयोग किया, और शुद्ध जैविक खेती की जिसके करें वह अतिरिक्त खर्च को कम करने में सक्षम रहे। उन्हें इस सहजन के पौधे से 6 महीने के बाद उत्पादन मिलना शुरू हो गया। बता दें आमतौर पर, ड्रमस्टिक फसल को किसी भी बीमारी, कीट का खतरा नहीं होता है। ड्रमस्टिक के पेड़ को कम जगह की आवश्यकता होती है, इस प्रकार न्यूनतम निवेश में सर्वाधिक मुनाफे वाले इस विकल्प से श्रीपति की जिंदगी में सकारात्मक बदलाव आए।
उनके ड्रमस्टिक बाज़ार में 60 से 70 रुपए प्रति किलग्राम के भाव से बिक रहे हैं। श्रीपति अब इस सीजन में 4000 किलोग्राम ड्रमस्टिक फसल उत्पादन से कम से कम दो लाख की आय की उम्मीद कर रहे हैं।
श्रीपति कहते हैं - “ मेरे गांव में ज्यादातर कपास की फसल उगाई जा रही थी, इसलिए मैं वैकल्पिक विकल्प खोज रहा था। जब मैंने मानवलोक के बारे में जाना, मुझे पता चला वो आय कुशल कर किसानों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए एक ड्रमस्टिक रोपण की पहल के साथ आए हैं, मैंने अपने खेत में इस गतिविधि को करने का फैसला किया। अब मैं खुश हूँ क्योंकि मुझे पारंपरिक फसलों के बजाय ड्रमस्टिक के माध्यम से अधिक लाभ और आय प्राप्त हो रही है। ”
तो यह थी सूखाग्रस्त इलाकों में कृषि से जुड़ी समस्या और उनके उपाय से जुड़ी विशेष जानकारी। श्रीपति की तरह आप भी महाराष्ट्र या उत्तराखंड के किसान हैं और अपने लिए या किसी और किसान के लिए सहायता चाहते हैं तो 02248934037, इस न. पर संपर्क करें। अगर आप सक्षम हैं तो आप https://www.saveindianfarmers.org/
पर किसानों की सहायता के लिए दान भी कर सकते हैं और ट्रैक्टर व किसानी की हर तरह की जानकारी के लिए जुड़े रहें TractorGyan के साथ।
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