किसान ने बुलेट ट्रैक्टर बनाकर जीता कृषि रत्न अवार्ड और कर दिया यह कमाल!!
महाराष्ट्र के एक किसान ने बहुत ही कम कीमत में एक ऐसे बुलेट ट्रैक्टर(Bullet Tractor) का निर्माण कर दिया जिसने पूरे देश में धमाल मचा रखा है। यह ट्रैक्टर ना सिर्फ बहुत कम कीमत पर आता है बल्कि बहुत कम डीजल भी खाता है। छोटा-सा यह ट्रैक्टर खेती के बड़े-बड़े काम बहुत आसानी से कर सकता है। आइए जानते हैं इस लोकप्रिय ट्रैक्टर के बारे में विस्तार से कि आखिर कैसे एक आम किसान ने इसका आविष्कार किया और कैसे पहुंचा यह सैकड़ों किसानों तक।
कौन है वो किसान जिसने बनाया बुलेट ट्रैक्टर?
महाराष्ट्र के लातूर जिले में निलंगा इलाके के निवासी, साल 2015 से कम बारिश और पानी के संकट से जूझ रहे हैं। इन्हीं किसानों में से एक हैं, मकबूल शेख, जो अपनी तीन एकड़ जमीन पर खेती करते हैं। 43 वर्षीय मकबूल ने भी पानी की समस्या के कारण अपने बैलों को बेच दिया था। इसके बाद, उनके लिए खेतों में काम करना और मुश्किल हो गया था। लेकिन, मकबूल ने इस परेशानी को एक मौके की तरह लिया। उन्होंने ऐसा समाधान ढूंढा, जो आज न सिर्फ उनके, बल्कि और भी सैकड़ों किसानों के काम आ रहा है। मकबूल ने खेती के काम के लिए एक खास तरह का ट्रैक्टर (Bullet Tractor) बनाया, जिसकी कीमत बाजार में मिलने वाले ट्रैक्टर से दस गुना कम है।
मात्र 1 लाख 60 हजार है इस बुलेट ट्रैक्टर की कीमत!
मकबूल कहते हैं, “बाजार में एक सामान्य ट्रैक्टर की कीमत लगभग नौ लाख रूपये होती है और सभी यंत्र व उपकरणों के साथ, इसकी कीमत 14 लाख रूपये तक पहुँच जाती है। छोटा ट्रैक्टर भी आपको कम से कम साढ़े तीन लाख रूपये का मिलता है। लेकिन, बुलेट ट्रैक्टर (Bullet Tractor) की कीमत मात्र 1 लाख 60 हजार रूपये है।
कैसे बनाया बुलेट ट्रैक्टर?
मकबूल बताते हैं कि उन्होंने अपने ट्रैक्टर के मॉडल पर साल 2016 से काम करना शुरू किया। पहले उन्होंने वर्कशॉप में पड़े पुराने माल और इंजन को इस्तेमाल में लिया। वह कहते हैं, “उन्हें ऐसा ट्रैक्टर बनाना था जो आकार में छोटा हो, लेकिन खेती से जुड़े सभी कामों के लिए अच्छा हो। भाई की वर्कशॉप पर काम करने के कारण मुझे ट्रैक्टर बनाने की सभी तकनीकें पता थीं। इसलिए मैंने तीन पहियों वाला, 10 एचपी इंजन का ट्रैक्टर बनाने का फैसला किया। इसके लिए मैंने एक पुरानी बुलेट मोटरसाइकिल को इस्तेमाल में लिया।”
100 बार असफल होने के बाद भी नहीं हारी हिम्मत!
ट्रैक्टर को अंतिम रूप देने में मकबूल को दो साल का समय लगा। वह कहते हैं कि उन्होंने इस पर कम से कम 100 बार काम किया है। कई बार ट्रैक्टर के सभी कल-पुर्जे (पार्ट्स) साथ में काम नहीं करते थे। साथ ही, कम ईंधन खपत करने वाला ट्रैक्टर बनाना भी, मेरे लिए एक चुनौती थी। खेत में परीक्षण करने से पहले, इसे तैयार करने में कई महीने लगे। परीक्षण के बाद और 5 ट्रैक्टर उन्होंने बनाए और किसानों को ट्रायल के लिए दिए। उनसे उन्हें जो सुझाव मिले, उनपर फिर से काम किया गया। साल 2018 में आखिरकार, यह ट्रैक्टर बनकर तैयार हुआ।
कहां से मिली प्रेरणा?
उन्हें आविष्कार करने की प्रेरणा उनके बड़े भाई के ट्रैक्टर वर्कशॉप, ‘एग्रो वन ट्रेलर्स ऐंड मंसूरभाई ट्रैक्टर्स’ में काम करने से मिली। वह बताते हैं, “बचपन से ही मैंने अपने बड़े भाई, मंसूर के साथ मिलकर मकैनिक के तौर पर काम किया है। मैं मरम्मत और रखरखाव से जुड़े सभी काम करता था। लेकिन कुछ साल पहले, उनके देहांत के बाद मैं खेती के साथ-साथ उनकी वर्कशॉप भी संभालने लगा।”
सैकड़ों लोगों को बुलेट ट्रैक्टर बनाकर बेच चुके हैं मकबूल!
मकबूल ने 2018 में जब अपना पहला बुलेट ट्रैक्टर पूरी तरह से तैयार कर लिया और फिर धीरे-धीरे से लोगों तक पहुंचाया तो यह आविष्कार इतना मशहूर हुआ है कि उनके इलाके के 140 किसान अब तक उनसे यह ट्रैक्टर खरीद चुके हैं।
बुलेट ट्रैक्टर (Bullet Tractor) इस्तेमाल करने वाले एक किसान, सुधीर कपलापुरे बताते हैं, “मेरे पास 20 एकड़ का खेत है और बुलेट ट्रैक्टर से मेरे सभी काम अच्छे से हो जाते हैं। मुझे अब किसी बैल या महंगे ट्रैक्टर की जरूरत नहीं होती है। बुलेट ट्रैक्टर (Bullet Tractor) से खेत के हर एक कोने में बिजाई करना संभव है, जबकि बड़े ट्रैक्टर से यह नहीं हो पाता था। इसकी मदद से खरपतवार भी आसानी से निकल जाती है। साथ ही, गन्ने की फसल में अब हम आसानी से छिड़काव कर पाते हैं क्योंकि, इस ट्रैक्टर से पतली क्यारियों के बीच जाना भी संभव हो पाता है।”
बुलेट ट्रैक्टर के फायदे!
● बुलेट ट्रैक्टर से बुवाई, छंटाई/निराई, कीटनाशकों के छिड़काव, और खेत की जुताई जैसे काम आसानी से किये जा सकते हैं।
● बुलेट ट्रैक्टर बहुत ही कम डीजल खाता है।
● एक लीटर डीजल में, बुलेट ट्रैक्टर डेढ़ घंटे काम करता है। जबकि, सामान्य बड़े ट्रैक्टर के लिए दोगुने डीजल की जरूरत होती है।
● छोटे ट्रैक्टर की कीमत भी लगभग 3:30 लाख तक होती है जबकि यह ट्रैक्टर आपको ₹1,60000 में ही मिल जाएगा।
आवश्यकता ही आविष्कार की जननी हैं!
43 वर्षीय मकबूल ने पानी की समस्या के कारण अपने बैलों को बेच दिया था। इसके बाद, उनके लिए खेतों में काम करना और मुश्किल हो गया था। लेकिन, मकबूल ने इस परेशानी को एक मौके की तरह लिया। उन्होंने ऐसा समाधान ढूंढा, जो आज न सिर्फ उनके, बल्कि और भी सैकड़ों किसानों के काम आ रहा है।
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