भारत में अगर कहीं जन्नत है तो वह जम्मू-कश्मीर है। भौगोलिक सुंदरता के अलावा जम्मू कश्मीर में कृषि के लिए भी अनुकूल माहौल है। भारत के ही ज्यादातर क्षेत्रों की तरह जम्मू कश्मीर भी एक कृषि प्रधान क्षेत्र जहां की 80% से अधिक आबादी कृषि पर निर्भर करती है। तो आज हम जम्मू, कश्मीर घाटी और लद्दाख की कृषि व्यवस्था के बारे में बात करेंगे।
24 Aug, 2020
भारत में अगर कहीं जन्नत है तो वह जम्मू-कश्मीर है। भौगोलिक सुंदरता के अलावा जम्मू कश्मीर में कृषि के लिए भी अनुकूल माहौल है। भारत के ही ज्यादातर क्षेत्रों की तरह जम्मू कश्मीर भी एक कृषि प्रधान क्षेत्र जहां की 80% से अधिक आबादी कृषि पर निर्भर करती है। तो आज हम जम्मू, कश्मीर घाटी और लद्दाख की कृषि व्यवस्था के बारे में बात करेंगे।
जम्मू कश्मीर की प्रमुख फसलें:-
पहले बता दें कि सांस्कृतिक दृष्टिकोण के साथ-साथ भौगोलिक दृष्टिकोण से भी यह भू भाग बहुत विविधता से भरा हुआ है,
जम्मू में उपोष्णकटिबंधीय कृषि-जलवायु है, कश्मीर में शीतोष्ण और लद्दाख में ठंड शुष्क जलवायु है। जब जम्मू-कश्मीर प्रदेश था तब राज्य की जीएसडीपी का 50% हिस्सा कृषि से था।
वर्ष 2009 के आंकड़ों के माने तो क्षेत्र का 35% हिस्सा कृषि के लिए उपयोग में लिया जाता है, जिसमें भी 70% हिस्से में खाद्य फसलों बोई जाती हैं। चावल, मक्का, गेहूं, दालें, चारा, तिलहन, आलू और जौ राज्य की प्रमुख फसलें हैं। हालांकि आज के दौर में किसानों का रुझान फूल, सब्जियां, गुणवत्ता वाले बीज, सुगंधित और औषधीय पौधे, मशरूम की खेती की तरफ बढ़ता दिख रहा है। शहद, मधुमक्खी पालन, चारे की सघनता, गुणवत्तापूर्ण केसर का उत्पादन, बासमती 'चावल, 'राजमाश', ऑफ- सीजन सब्जियां, आलू आदि की खेती कृषि जलवायु अनुकूलता के आधार पर विशिष्ट क्षेत्रों, बेल्टों और समूहों में की जाती है।
इसके अलावा फलों की खेती क्षेत्र के लिए बहुत लाभदायक है, सेब, नाशपाती, चेरी, प्लम, अंगूर, अनार, शहतूत, आड़ू, खुबानी, अखरोट और बादाम को एक ठंडी जलवायु मध्यम बारिश और तेज धूप की आवश्यकता होती है और कश्मीर की जलवायु उनकी खेती के अनुकूल है। कश्मीरी सेब फल तो देश भर में प्रसिद्ध है और क्षेत्र की आय का मुख्य स्त्रोत भी।
कश्मीर में सब्जियों की जैविक खेती:-
कश्मीर की घाटी आलू, शलजम, गाजर, पालक, टमाटर, गोभी, फूलगोभी, मूली, प्याज, कमल-डंठल, बैगन, लौकी और करेले की खेती के लिए भी जानी जाती है और अब यहां के किसान इन्हें उगाने की जैविक पद्धति को भी अपना रहे हैं। किसानों को जैविक खेती से बहुत फायदा हो रहा है, जिसे प्रांत के कुछ बेरोजगार युवाओं ने शुरू किया और फिर अन्य लोगों ने भी अपनाया है। राजौरी और नौशेरा जैसे जिलों में बड़ी संख्या में किसान इस पद्धति को अपना रहे हैं, जो पहले ऊपज की कम मांग और फसल बर्बाद होने के कारण परेशान रहते थे। जैविक खेती से तैयार की गई सब्जियों की मांग अब ना केवल स्थानीय इलाके में है, बल्कि यह से बाहर भी इसकी आपूर्ति की जा रही है साथ ही आर्मी को भी इसकी आपूर्ति की जा रही है, जिससे किसानों को अच्छा मुनाफा मिल रहा है।
कश्मीर घाटी कृषि में उन और सिल्क का उत्पादन भी शामिल है।
आज जहां क्षेत्र राजनैतिक व चरमपंथी समस्याओं का सामना कर रहा है वही कृषि के क्षेत्र में यहां लगातार नई संभावनाएं विकसित हो रही है।
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