किसानों को सालाना 6,000 रुपए सीधे उनके खातों में पहुंचाने के बाद केंद्र सरकार ने फिर से इसी तरह का एक बड़ा कदम किसानों के आर्थिक हित के लिए उठाया है।
26 Oct, 2020
केंद्र ने अब किसान सम्मान निधि के 6,000 रुपए के साथ हर साल ढाई ढाई हज़ार की दो किश्तों में 5,000 रुपए सीधे किसानों के खाते में पहुंचाने की तैयारी कर ली है।
दरअसल ये पैसा किसानों को यूरिया खाद की सब्सिडी के तौर पर दिया जा रहा है, जो कि अब तक यूरिया कंपनियों को दी जाता थी। सरकार से कदम को उठाने की सिफारिश कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) ने की है।
यह आयोग की ही सिफारिश है कि किसानों को 2,500 रुपये की दो किश्तों में भुगतान किया जाए, पहली किश्त खरीफ की फसल शुरुआत में और दूसरी रबी की शुरुआत में दी जाए।
अभी हो रही है यह धांधली:-
वर्तमान में सरकार उर्वरकों की सब्सिडी कंपनियों को देती है, ताकि वे बाज़ार में सस्ते दामों पर किसानों को उर्वरक बैंचे। लेकिन अभी यह व्यवस्था पूरी तरह भ्रष्टाचार की शिकार बन गई है,सहकारी समितियों और भ्रष्ट कृषि अधिकारियों के कारण खाद की किल्लत अब हर साल की बात बन गई है और हर साल किसानों और व्यापारियों को अंतत: खाद ब्लैक करने वालों से महंगे भाव पर खरीदना पड़ता हैं।
उर्वरक सब्सिडी के लिए सरकार सालाना लगभग 80 हजार करोड़ रुपए खर्च करती है। 2019-20 में 69418.85 रुपए की उर्वरक सब्सिडी दी गई थी, जिसमें से स्वदेशी यूरिया कंपनियों का हिस्सा 43,050 करोड़ रुपए है, जबकि विदेशी यूरिया कंपनियों से आयात पर 14049 करोड़ रुपए की सरकारी सहायता अलग से दी गई। फिलहाल 32 निजी कंपनियां, 6 सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां और दो सहकारी कंपनियां यह सब्सिडी ले रहीं हैं।
अब सरकार यह राशि सीधे किसानों तो पहुंचाने की तैयारी में है, जिससे निश्चित तौर पर धांधली रुकेगी।
जानें किसान संगठन क्या कह रहे हैं?
इसपर राष्ट्रीय किसान महासंघ के संस्थापक सदस्य विनोद आंनद जी कह चुके है कि कंपनियों कि जगह सीधे किसानों के खाते में पैसा पहुंचना एक अच्छा कदम है। लेकिन उन्होने यह भी चेताया थी कि अगर सरकार किसानों को भी सीधे सब्सिडी नहीं देगी और कंपनियों की सब्सिडी भी बंद करेगी तो किसान इसका विरोध करेंगे। उन्होंने बताया कि सरकार के पास 11 करोड़ किसानों के बैंक अकाउंट और उनकी खेती का रिकॉर्ड है, सरकार बड़ी आसानी से हर साल 14.5 करोड़ रुपए की सब्सिडी हर किसान की यूनीक आईडी बनाकर उनके खाते में 6,000 रुपए तक डाल सकती है।
पूर्व में इसकी कदम की खासी मांग रही है, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवरजसिंह चौहान ने भी बताया था किस तरह यूरिया का काला कारोबार चल रहा है और सब्सिडी का सीधे किसानों के खाते में पहुंचना कितना जरूरी है। लेकिन अभी तक सरकार का इस पर ढीला रवय्या रहा है, इस साल भी सितम्बर में सरकार के रसायन और उर्वरक मंत्री सदानंद गौड़ा ने कहा था कि इसपर कोई ठोस निर्णय फिलहाल नहीं हुआ है।
लेकिन अब क्योंकि सीएसीपी ने इसकी सिफारिश रखी है तो अब डीबीटी के माध्यम से किसानो तक यह सब्सिडी पहुंचने की पूरी उम्मीद है।
सरकार का यह कदम अवश्य ही किसानों के हित में होगा, लेकिन किसानों यह भी समझना जरूरी है कि आज भारत यूरिया का सर्वाधिक उपयोग करने वाला देश है। कृषि में यूरिया के उपयोग से सर्वाधिक नाइट्रोजन प्रदूषण होता है, जिसके लिए डब्लयू.एच.ओ भी भारत चेता चुका है। किसान जरूरत से ज्यादा यूरिया का उपयोग कर रहें है, जिससे पर्यावरण को मिट्टी को बहुत नुकसान हो रहा है। अब सरकार भी चाहती है कि किसान यूरिया का उपयोग कम करे, तो जरूरत है आप इसके लिए भी सतर्क रहें।
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