मान गए मियां!
26 Feb, 2021
नमस्कार किसान भाइयों और बहनों! ट्रैक्टरज्ञान में एक बार फिर से आपका स्वागत है।
आज हम आपके बीच एक ऐसे ट्रैक्टर की कहानी लेकर आए हैं जो खरीदा तो 1957 में गया था पर काम आज भी दे रहा है। आप सोच रहे होंगे कि, इतना पुराना ट्रैक्टर किस काम में आ सकता है?
यह जानने के लिए इस लेख को पूरा पढ़ें।
बात 1957 की है, यह वह दौर था जब भारत में ट्रैक्टर नाम का शख्स नया-नया ही आया था! तब ट्रैक्टर खरीदना केवल बड़े-बड़े लोगों की ही बात थी! ट्रैक्टर केवल बड़े-बड़े घरानों तक ही सीमित था।लेकिन तभी एक क्रांति आई!
जिसे आज हम हरित क्रांति के नाम से जानते हैं। भारत में हरित क्रांति की शुरुआत साल 1966-67 में हुई थी। हरित क्रांति के बाद देश के कृषि क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति हुई। इन दिनों कृषि क्षेत्र की प्रक्रियाओं में क्रांतिकारी परिवर्तन आया।
कहानी 1957 वाले ट्रैक्टर की!
उत्तर प्रदेश के शामली में एक गांव है-भैंसवाल! वहां पर एक किसान हुए जिनका नाम था राज सिंह! राज सिंह गांव के धनी व्यक्तियों में से एक थे और पेशे से किसान थे। जब उन्होंने ट्रैक्टर नाम की चीज के बारे में सुना तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा, उन्हें विश्वास नहीं हुआ कि जिस काम के लिए वह इतनी मेहनत करते हैं और इतने दिन लग जाते हैं उस काम को यह ट्रैक्टर कुछ ही घंटों में कर सकता है। फिर वो ट्रैक्टर को खरीदने के लिए उत्सुक हो गए और उन्होंने शहर जाकर उसकी कीमत के बारे में पता किया। कीमत बताई गई ₹12000!!
उस समय के हिसाब से यह बड़ी तगड़ी रकम थी। परंतु राज सिंह ने अपने मन में ट्रैक्टर खरीदने का निर्णय कर लिया था। तो जैसे तैसे उन्होंने कुछ अपनी जेब से तो कुछ अपने रिश्तेदारों से उधार लेकर पैसों का जुगाड़ किया और पैसे लेकर वापस शहर पहुंच गए। पर अब फिर एक समस्या खड़ी हो गई,ट्रैक्टर खरीद भी ले तो उसको चलाएं कैसे। पर वह कहते हैं ना कि किसी चीज को अगर पूरी शिद्दत से चाहो तो पूरी कायनात उसे तुमसे मिलाने की कोशिश में लग जाती है। राज सिंह की लगन का ही नतीजा था कि शोरूम वालों ने उसे कुछ दिनों में ट्रैक्टर चलाना सिखा दिया। फिर क्या देर थी राज सिंह ट्रैक्टर लेकर चल दिए अपने गांव की ओर!
अब आगे देखते हैं, गांव में क्या होता है।
गांव में लग गया मेला!
राज सिंह जैसे ही ट्रैक्टर को लेकर अपने घर पहुंचे, पूरे गांव में अफरा-तफरी मच गई। गांव के लोगों के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। आस-पास के गांव में भी यह खबर आग की तरह फैल गई। पूरे जिले भर के गांवों में राज सिंह के ट्रैक्टर की चर्चा होने लगी। रोजाना ट्रैक्टर को देखने के लिए उनके घर भीड़ जुटने लगी।
राज सिंह के बेटे विनय पाल सिंह बताते हैं कि यह सिलसिला कई महीनों तक खत्म नहीं हुई।
क्या था ट्रैक्टर का नाम और कहां से मंगवाया गया था?
इसके मालिक विनय पाल इसे बड़ी हिफाजत से रखते हैं. उनका कहना है कि, उनके पिता राज सिंह जी ने 1957 में 12000 रुपये में ये टैक्टर मेरठ से खरीदा था. जो बाहर से मंगवाया गया था, जिसके कागज 1958 में मिले थे. इस टैक्टर का नंबर है UST 1900. विनय पाल सिंह इस टैक्टर को अपने पिता की निशानी मानते हैं इसलिए वो आज भी इस टैक्टर से बहुत प्यार करते हैं.
क्या आज भी आता है काम?
विनय पाल की मानें तो, यह टैक्टर आज भी एक हैंडल में स्टार्ट होता है. इससे जानवरों के लिए चारा काटना व थोड़ी बहुत जुताई का काम किया जाता है. क्योंकि इसके गेयर बक्से का सामान अब नहीं मिलता, जिसकी वजह से इससे भारी काम नहीं करते. क्योंकि भारी काम करने से गेयर बक्से पर जोर पड़ेता है.
नये ट्रैक्टरों की अपेक्षा कहीं ज्यादा मजबूत,बोले तो ओल्ड इज़ गोल्ड!
अब हम इस टैक्टर की खासियत आपको बताते हैं. ये टैक्टर आज के टैक्टरों की अपेक्षा ज्यादा मजबूत है. 1957 से ये खुला आसमान के नीचे खड़ा हो रहा है, चाहे सर्दी, बरसात गर्मी, सभी मौसम में ये खुले आसमान के नीचे ही रखा जाता है, बावजूद इसके, कभी भी स्टार्ट होने में कोई दिक्कत नहीं आई, और गांव के युवा भी इसे देख कर आश्चर्य करते हैं, कि जबसे उन्होंने होश संभाला तब से वह इस ट्रैक्टर को देख रहे हैं और ऐसे ही ट्रैक्टर रोज चलता है. जानवरों के लिए चारा काटता है, थोड़ी बहुत जुताई भी करता है और आज भी नए टैक्टरों की अपेक्षा ये ज्यादा कार्य करता है.
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