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फसल को पाले (कोहरा, तुषार) से कैसे बचाया जाये ?

फसल को पाले (कोहरा, तुषार) से कैसे बचाया जाये ?

    फसल को पाले (कोहरा, तुषार) से कैसे बचाया जाये ?

हमारा लक्ष्य भारतीय किसानों और किसानी दोनों को बेहतर बनाना है। हमें उम्मीद है आप इसमें हमारा साथ जरूर देंगे।

27 Dec, 2019

सर्दी के मौसम में जब कोहरा पड़ना शुरू होता है।  तो फ़सलों पर कोहरा तथा पाले (तुषार) का प्रभाव लगभग सभी फसलो में थोड़ा नुकशान पंहुचा देता है। यदि सही समय पर ध्यान न दिया जाये, तो ये हमारी फसल को कभी कभी बहुत नुकशान पंहुचा देता है। पाला गेहूं और जौ में 10 से 20% तथा सरसों, जीरा, धनिया, सौंफ, अफीम, मटर, चना, गन्ने में लगभग 30 से 40% तक तथा सब्जियों में जैसे टमाटर, मिर्ची, बैंगन आदि में 40 से 60% तक लगभग ख़राब कर देता है।

पाला के प्रकार- पाला फसल को दो प्रकार से नष्ट करता है। जिन्हे हम इस प्रकार से जानते है। 
1. एडवेक्टिव
2. रेडिएटिव


एडवेक्टिव - यह पाला जब ठंडी हवाये चलती है।  तब इस प्रकार के पाला पड़ने की सम्भावना अधिक हो जाती है। ऐसी हवाएं की परत एक-डेढ़ किलोमीटर तक हो सकती है। इस स्थिति में आकाश में बादल हो या खुला हो दोनों ही परिस्थितियों में एडवेक्टिव पाला पड़ने की संभावना हो सकती है।
रेडिएटिव - जब आकाश बिल्कुल साफ हो और हवा शांत हो ऐसी स्थिति में जो पाला पड़ता है।  उसे रेडिएटिव पाला कहते है।

पाला फसल पर कैसे पड़ता है -  जब रात में कोहरा पड़ता है। तो आकाश में हवाएं बिलकुल शांत हो जाती है, और आकाश में बादल घने हो जाते है।  जो जमीन से उत्पन्न होने वाले तापमान की हवाओ को रोक लेते है। रुकी हुए हवाएं बहती हुई ठंडी हवाओ के साथ मिलकर तापमान को एक सामान स्थिर कर देती है और एक परत लेती है फिर वो स्थिर हवाएं निकलने वाली गर्म हवाओ को आकाश में जाने से रोक देती है।  इस स्थिति में हवाएं न चलने से एक इनवर्शन (उलट देना ऊपर की नीचे और नीचे की ऊपर) परत बन जाती है। इनवर्शन यानी एक ऐसी वायुमंडलीय दिशा जो सामान्य दिनों की तुलना में उल्टी हो जाती है। जैसे सामान्य दिनों में हवा का ताप ऊंचाई बढ़ने से घटता है।

लेकिन इनवर्शन के कारण ठंडी हवा पृथ्वी की सतह के पास इकट्ठा हो ताजी है, और गर्म हवा इस पर्त के ऊपर होती है। वो हवाएं हमारी फसल को इतना ठंडा कर देती है। जिस कारण तना पर बर्फ सी जम जाती है। धूप न होने से पौधो में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया कम हो पाती है। जिससे फल और फूलो को पर्याप्त मात्रा में भोजन नहीं पहुँचता है। जिससे दाने कमजोर और फूल गिरने लगते है।

उदाहरण - जब हम ठंड के दिनों में हीटर रोड से पानी गर्म करते है, तो बाल्टी में ऊपर पानी गर्म हो जाता है। अब देखते है नीचे की सतह का पानी ठंडा या कम गर्म होता है। यही प्रक्रिया हमारे खेतो में होती है। जो ठंडी हवा नीचे रहकर हमारे पौधों को नुकशान कर देती है। क्योंकि पौधों की ठण्ड सहने की क्षमता (लगभग) 2 डिग्री सेंट्रिग्रेट तक होती है।

पाले के लक्षण व उससे होने वाला पौधे व फसल पर प्रभाव-
1. पाला के प्रभाव से फल कमजोर तथा कभी कभी मर भी जाता है। फूलो में सुकड़न आने वो झड़ने लगते है।
2. पाले से फसल का रंग समाप्त होने लगता जिससे पौधे कमजोर तथा पीले पड़ने लगाते है, तथा पत्तियों का रंग मिट्टी के रंग जैसा दिखने लगता है। फसल घनी होने से पौधों के पत्तो तक धुप हवा नहीं पहुंच पाती है। जिससे पत्ते सड़ने लगते है और बैक्टीरिया उत्पन्न हो जाते है। जिससे पौधों में कई बीमारियों का प्रकोप बढ़ने लग जाता है।
3. इसमें अगर फलो की बात की जाये तो फल के ऊपर धब्बे पड़ जाते हैं व स्वाद भी खराब हो जाता है।
4. पाले से फल व सब्जियों में कीटों का प्रकोप भी बढ़ने लग जाता है, जिससे सब्जियां सुकुड़ तथा ख़राब हो जाती है।  जिससे कभी-कभी शत प्रतिशत सब्जियों की फसल नष्ट हो जाती है।
5. पाले के कारण अधिकतर पौधों के पत्ते ,टहनियां और तने के नष्ट होने से पौधों को अधिक बीमारियां लग जाती है और फूलो के गिरने से पैदावार में कमी आ जाती है।


पाले (कोहरा) तथा शीतलहर से फसल की सुरक्षा के उपाय

  1. जब रात को कोहरा दिखने लगे या ठंडी हवा चलने की संभावना हो उस समय खेत के आस पास हवा दिशा में खेतों मेड़ों पर रात्रि में कूड़ा-कचरा या घास-फूस जलाकर धुआं करना चाहिए, ताकि खेत में धुआं हो जाए एवं वातावरण में गर्मी आ जाए। धुआं करने के लिए क्रूड ऑयल का प्रयोग भी कर सकते हैं। जिससे हमारे खेत के ऊपर एक परत सी बन जाती है। ऐसा करने से 4 डिग्री सेल्सियस तापमान आसानी से बढ़ाया जा सकता है।

  2. पाला गिरने की संभावना या कोहरा ज्यादा पड़ने लगे तब खेत में हल्की सिंचाई करनी चाहिए। नमी युक्त जमीन में काफी देर तक गर्मी रहती है, तथा मिट्टी का तापमान कम नहीं होता है। इस प्रकार पर्याप्त नमी होने पर शीतलहर व पाले से नुकसान की संभावना कम हो जाती है। यदि हो सके तो सिचाई फुब्बारे से करनी चाहिए।

  3. जब पाला पड़ने की संभावना हो उन दिनों फसलों पर गंधक के 0.1% घोल का छिड़काव करना चाहिए। इस हेतु 1 लीटर गंधक को 1000 लीटर (कृषि विभाग या दावई देने वाले दुकानदार से पूछ कर)
    पानी में घोलकर एक हेक्टर में छिड़काव करे जिसका का असर 10 से 15 दिनों (लगभग दो हफ्तों तक) तक रहता है। यदि दो हफ्तों के बाद भी शीतलहर तथा पाले की संभावना बनी रहे तो गंधक का छिड़काव को 10-15 दिन के अंतराल पर दोहराते रहे।

  4. सरसों, गेहू, चावल, आलू, मटर जैसी फसलों को पाले से बचाने के लिए गंधक का छिड़काव करने से न केवल पाले से बचाया जा सकता है। बल्कि इससे पौधों में लौह तत्व एवं रासायनिक तत्व भी बढ़ जाते है, जो पौधों में रोगो से लड़ने की क्षमता एवं फसल को जल्दी पकने में सहायक होते है।

  5. इस समय माइक्रो न्यूट्रीशियन और फांजीसाइड का भी छिड़काव कर सकते है। इससे भी फसल को काफी राहत मिलेगी।  

  6. आप सल्फर का भी छिड़काव 20-30 ग्राम /15 लीटर (कृषि विभाग या दावई देने वाले दुकानदार से पूछ कर)
    के हिसाब से कर सकते है।

  7. खेत की सिचाई के लिए बनी चारो तरफ की नालिया को पानी से भर देने से भी काफी राहत मिलती है।Tractorgyan से जुड़े रहे। हमारे विभिन्न सोशल मीडिया चैनेलों को फॉलो व सब्सक्राइब करें जिससे Tractorgyan और हमारी टीम आप तक खेती किसानी, ट्रेक्टर और भी फायेदमंद जानकारियां आप तक पहुचां सकें।

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