रेशम की खेती से होगा लाखों का फायदा - जानें रेशम कीट पालन के बारे में
रेशम की खेती बहुत ही लाभदायक व्यवसायों में से एक है। इससे आप शुरुआती लागत के बाद सालाना तौर पर 5 लाख एवं उससे अधिक रुपए का लाभ उठा सकते हैं । यदि आप भी रेशम की खेती करने का विचार रखते हैं तो इस आर्टिकल में हम रेशम की खेती से जुड़े सभी महत्वपूर्ण बिंदुओं के बारे में आपको बताएंगे ।
रेशम प्राकृतिक प्रोटीन से बना रेशा है। रेशम का उपयोग वस्त्र बनाने के लिए किया जाता है । इसकी बनावट के कारण यह बाजार में बहुत महंगी कीमतों में बिकता है । इन प्रोटीन रेशों में मुख्यतः फिब्रोइन होता है। ये रेशे कीड़ों के लार्वा द्वारा बनाया जाता है। रेशम की खेती मुख्यतः तीन प्रकार से होती है - मलबेरी रेशम , टसर रेशम एवं एरी रेशम के रूप में । सबसे उत्तम रेशम शहतूत, अर्जुन के पत्तों पर पलने वाले कीड़ों के लार्वा द्वारा बनाया जाता है ।
कैसे कर सकते हैं रेशम की खेती ?
रेशम की खेती करने के लिए सबसे पहली आवश्यकता होती है एक सिंचित भूमि की, जिस पर शहतूत के पौधों को रोपा जा सके ।शहतूत के पौधों की खास बात है कि इन्हें कहीं भी लगाया जा सकता है। इन पौधों को विशेष किस्म की मिट्टी एवं जलवायु की जरूरत नही होती है इस पेड़ की पत्तियाँ रेशम के कीड़ों का मुख्य भोजन होती है।
रेशम उत्पादन-औसतन 1000 कि. ग्रा. फ्रेश कोकून सुखाने पर 400 कि. ग्रा. के लगभग रह जाता है । जिसमें से 385 कि. ग्रा. में प्यूपा 230 कि. ग्रा. रहता है । और शेष 155 कि. ग्रा. शेल रहता है। इस 230 कि.ग्रा. प्यूपा में से लगभग 120 कि. ग्रा. कच्चा रेशम तथा 35 कि.ग्रा. सिल्क वेस्ट प्राप्त होता है।
रीलिंग की प्रक्रिया द्वारा इस कच्चे रेशम से रेशम को चरखे/तकली द्वारा रोल किया जाता है ।
परंतु रेशम को तभी बेचा जा सकता है जब उसको कपड़े के रूप में बुन लिया जाए । बुनाई की प्रक्रिया के लिए वर्तमान में कई मशीनें बाजार में उपलब्ध हैं । फिर भी हथकरघा से बने हुए रेशम का बाजार में ज्यादा मूल्य होता है। इस संबंध में आप अपने क्षेत्र के खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड से परामर्श ले सकते हैं ।
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