किसानों को खेती के लिए उर्वरक और खाद की जरूरत होती है. जिसके लिए किसानों को मोटी रकम चुकानी होती है. भारत में खाद और उर्वरकों के दाम बढ़ गए है. किसानों पर आर्थिक बोझ ना पड़े और खरीफ के सीजन में परेशानी नहीं आए इसके लिए सरकार ने खाद पर सब्सिडी बढ़ाने का फैसला लिया है. खरीफ सीजन के शुरुआत में किसानों को खाद और उर्वरकों की आवश्यकता होती है. यदि सरकार किसानों को सब्सिडी बढ़ा कर खाद और उर्वरक नहीं देती है तो किसानों को महंगे खाद को खरीदना पड़ेगा जिससे कि फसल की लागत में वृद्धि होगी. जबकि सरकार चाहती है कि किसानों पर अतिरिक्त आर्थिक भार नहीं पड़े. इसके लिए सरकार की ओर से खाद और उर्वरकों पर सब्सिडी बढ़ाने का निर्णय लिया गया है.

मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो कैबिनेट की बैठक में खाद और यूरिया पर सब्सिडी बढ़ाने की मंजूरी दे दी गई है. सरकार का प्रयास है कि रॉ मटेरियल के रेट में वृद्धि का किसानों पर बोझ ना पड़े तो ही अच्छा रहेगा. इसलिए वो सब्सिडी का और भार उठाने की तैयारी कर रही है. बताया गया है कि रूस-युक्रेन युद्ध के चलते अंतराष्ट्रीय बाजार में उर्वरकों के रॉ मटेरियल की कीमतें तेजी से बढ़ी है. क्योंकि फास्फेटिक और पोटेशियम उर्वरकों की आपूर्ति प्रभावित हुई है. खाद कम्पनियों के मुताबिक़ रॉ मटेरियल काफी महंगा हो चूका है. कनाडा, चाइना, जॉर्डन, मलेशिया, इंडोनेशिया और अमेरिका से भी भारत खाद का रॉ मटेरियल आयात करता है.
केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने 60,939.23 करोड़ रुपए की सब्सिडी को मजूरी दी है. मौजूदा वित्तीय वर्ष में केंद्र का खाद सब्सिडी पर व्यय 2.10-2.30 लाख करोड़ रुपए के बीच रहने का अनुमान है. रिपोर्ट्स की माने तो यह एक साल से खाद सब्सिडी पर होने वाला अब तक का सबसे अधिक खर्च होगा.
किसानों को सरकार की ओर से खाद एवं उर्वरकों पर सब्सिडी का लाभ प्रदान किया जाता रहा है ताकि किसानों को उचित कीमत पर खाद मिल सके और उन पर आर्थिक भार भी नहीं रहें. कुछ वर्षों पहले खाद पर सब्सिडी 80 हजार करोड़ रुपए के करीब थी. लेकिन खाद और उर्वरक बनाने में लगने वाले कच्चे मान की बढ़ोतरी के कारण उर्वरकों के दाम दोगुने हो गए तब सरकार ने भारी सब्सिडी देकर किसानों को राहता प्रदान की है. पिछले दिनों रसायन और उर्वरक मंत्री मनसुख मांडविया ने राज्यसभा में बताया था कि सरकार की कोशिश है कि किसानों को खाद और उर्वरक उचित कीमत पर मिले इसके लिए किसानों को सब्सिडी पर उपलब्ध कराया जाता है. भारत में यूरिया की एक बोरी 266 रुपए में आती है. वहीं कई देशों में इसकी कीमत करीब 4 हजार रुपए भी रही है. इसी तरीके से डीएपी पर सरकार 2650 रुपए की सब्सिडी दे रही है.
खबरों के अनुसार माने तो महामारी और रूस-युक्रेन युद्ध के चलते अंतराष्ट्रीय स्तर पर उर्वरक के दाम तेजी से बढ़े है. वहीं दूसरी तरफ माल-भाड़ा भी चार गुना बढ़ा है. यूरिया के दाम अप्रैल 2022 में 930 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गया था जी एक साल पहले 380 डॉलर प्रति टन था. इसी तरह डीएपी की कीमतों में भी उछाल देखने को मिला. उसकी कीमतें 555 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 924 डॉलर प्रति टन हो गई.
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केंद्र सरकार ने खाद के किस्मों और कीमत के आधार पर सब्सिडी देने का निर्णय लिया है. खरीफ फसल के दौरान कृषि कार्य के लिए वर्तमान में डीएपी खाद की कीमत सबसे ज्यादा रहती है. तो अब डीएपी खाद पर ही सरकार सबसे ज्यादा सब्सिडी देने का सोच रही है. सुपर फास्फेट में सब्सिडी की राशि सबसे कम मिलेगी. अभी किसानों को डीएपी के लिए मोती रकम खर्च करना पड़ती है. सब्सिडी से उन्हें प्रेषण नहीं होना पड़ेगा.

केंद्र सरकार द्वारा पहले सब्सिडी की राशि सीधे खाद निर्माता कम्पनियों के खाते में ही जमा करा दी जाती थी. लेकिन केंद्र सरकार ने इसमें बदलाव किए हैं और इस नियम के बाद जिले के करीब 14 हजार किसानों को सब्सिडी योजना का लाभ मिलेगा हालांकि इसके लिए किसानों को पहले खाद अपनी ओर से राशि खर्च कर खरीदना पड़ेगा. जिसके बाद सब्सिडी का इन्तेजार करना पड़ेगा और उसके बाद ही राशि खाते में जमा होगी.
बता दें कि भारत में हरित क्रांति के चलते फसल में उर्वरकों का प्रयोग किया जाने लगा और अब उर्वरकों का प्रयोग इतना होने लगा है कि किसानों के बीच इसकी मांग बढ़ती जा रही है. खेती में उर्वरकों के इस्तेमाल को कम करने के लिए सरकार की ओर से किसानों को जैविक खेती यानि प्राकृतिक खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. प्राकृतिक खेती का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसमें जैविक यानि प्राकृतिक चीजों का इस्तेमाल किया जाता है. इसमें गाय के गोबर, मूत्र, केंचुआ खाद, हरी खाद का प्रयोग किया जाता है जो भूमि की उपजाऊ क्षमता को बढ़ाते है. इसके विपरीत रासायनिक खाद जैसे यूरिया के उपयोग से भूमि के बंजर होने का खतरा भी बना रहता है. जबकि प्राकृतिक खेती से कम लागत पर किसानों द्वारा अधिक उत्पादन किया जा सकता है. क्योंकि इसमें रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल नहीं होता है जिससे किसानों का उर्वरक खरीदने का खर्च बच जाता है. वहीं कई राज्य सरकारें अब किसानों को प्राकृतिक खेती पर अनुदान का लाभ प्रदान कर रही हैं.
सरकार के एक शीर्ष अधिकारी ने बताया कि देश के उर्वरक की कोई कमी नहीं हो इसलिए सरकार कड़ी मेहनत कर रही है. उन्होंने बताया कि मौजूदा खरीफ सत्र के लिए देश के पास उर्वरक का पर्याप्त भंडार है और रबी सीजन में कोई भी समस्या नहीं आएगी. ध्यान देने वाली बात है कि उर्वरक की खपत रबी सीजन में 10 से 15 फीसदी अधिक होती है. सूत्रों के मुताबिक सरकार यूरिया की खुदरा दरें नहीं बढ़ाएगी और पर्याप्त सब्सिडी भी देगी ताकि गैर यूरिया उर्वरक के अधिकतम खुदरा दाम मौजूदा स्तर पर बने रहें|